Current Affairs

चुम्बकीय क्षेत्र :

    1. चुम्बकीय बल रेखायें,  उत्तरी ध्रुव से निकलकर दक्षिणी  ध्रुव में प्रवेश कराती हैं.
    2. चुम्बकीय क्षेत्र B के लम्बवत रखे  L लम्बाई के चालक में धारा i बहाने पर चालक पर लगने वाला बल,
      • F = i B L न्यूटन
    3. यदि चालक चुम्बकीय क्षेत्र से \theta कोण पर रखा है, तब बल,               
      • F = iBL  sin \theta
    4. बल की दिशा चुम्बकीय  क्षेत्र  B तथा धारा i दोनों के लम्ब होती है.
    5. चुम्बकीय क्षेत्र = B = \frac{F}{i \times L} \left(\frac{न्यूटन }{एम्पी० \times मी०}\right)
    6. चुम्बकीय क्षेत्र B के अन्य मात्रक वेबर/मी०^{2}, टेस्ला तथा गौस हैं.
    7. 1  गौस = 10^{-4}  वेबर/मी०^{2} = 10^{-4 } टेस्ला = 10^{-4} N/Am
    8. कुण्डली में धारा i प्रवाहित होने पर, यदि वह  \theta कोण पर स्थित किसी बिन्दु  पर घूम जाती है,
      • तब   i = K. \theta
    9. किसी चालक में i धारा प्रवाहित होने पर उससे r दूरी पर स्थित किसी बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र,     
      • B = \frac{\mu_{O}}{4\pi} = \frac{2i}{r} = \frac{Ki}{r} ,
      • जहाँ, \mu_{o} = 4\pi \times 10^{-7} ; K = \times 10^{-7}  न्यूटन/एमिपायर^{2}
    10. q कुलाम आवेश के  v मी०/से० से गतिमान होने पर, r दूरी पर स्थित किसी बिन्दु पर  उत्पन्न  चुम्बकीय क्षेत्र,
      • B = \frac{\mu_{o}}{4\pi}= \frac{qv sin  \theta}{r^{2}}=\frac{10^{-7}qv sin  \theta}{r^{2}} 
      • जहाँ  \theta  आवेश के वेग v तथा दूरी  r के बीच का कोण है.
    11. N  फेरों वाली l लम्बाई की परिनालिका में i प्रवाहित होने पर परिनालिका के भीतर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र,
      • चुम्बकीय क्षेत्र B = \frac{\mu_{o} \times Ni}{l}
    12. यदि दो समान्तर चालकों के बीच की दूरी  r है तथा उनमें i_{1},  i_{2} धारायें बह रही हैं तब उनकी l लम्बाई पर लगाने वाला बल,
      • F = \frac{ki_{1} \times i_{2}}{r} \times l न्यूटन
      • यदि धाराओं की दिशायें समान हैं तब आकर्षण बल लगता है और यदि विपरीत हैं तब प्रतिकर्षण बल लगता है.

इसे भी पढ़ें ⇒ प्रकाश (Light) के सूत्र एवं उपयोगी बातें

लौरेंज बल : 

    1. यदि q आवेश से आवेशित कोई कण चुम्बकीय क्षेत्र B की दिशा से \theta कोण पर v गति से गतिमान है तब कण पर लगने वाला बल,
      • लौरेंज बल F = q v B sin  \theta न्यूटन

चुम्बकीय फ्लक्स 

    1. चुम्बकीय फ्लक्स  \phi = B \times A वेबर             जहाँ,  A, चुम्बकीय क्षेत्र B  के लम्बवत तल का क्षेत्रफल है.
    2. यदि B, तल के लम्बवत न होकर तल पर खींचे गए लम्ब से \theta कोण बनाता है, तब
      • \phi = B \times A \times cos  \theta वेबर
    3. N फेरों वाली, चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत कुण्डली में से गुजरने वाला चुम्बकीय फ्लक्स,
      • \phi = N \times B \times A
      • जहाँ A कुण्डली के तल का क्षेत्रफल है. यदि कुण्डली का तल चुम्बकीय क्षेत्र के समान्तर है तब चुम्बकीय फ्लक्स शून्य होता है.
फैराडे के नियम :
    1. किसी विद्युत् परिपथ में प्रेरित वि० वा० बल उस परिपथ से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स के परिवर्तन की दर के समानुपाती होता है, अर्थात्   
      • e = - \left(\frac{\phi_{2}-\phi_{1} }{\Delta t}\right)
    2. N फेरों वाली कुण्डली में प्रेरित वि० वा० बल,
      • e = - N\left(\frac{\phi_{2}-\phi_{1} }{\Delta t}\right)

प्रत्यावर्ती धारा (A.C.) : 

यह वह धारा है जो समय के साथ बदलती रहती है और एक निश्चित समय के पश्चात् उतनी ही हो जाती है.

दिष्ट धारा (D.C.) :

यह वह धारा है जो समय के साथ नहीं बदलती.

डायनमो या विद्युत जनित्र (A.C. Dynamo) :

यह यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलता है. इसके मुख्य भाग क्षेत्र चुम्बक,  आर्मेचर, सर्पी वलय  तथा ब्रुश हैं.

दिष्टधारा जनित्र ((D.C. Dynamo) :

यह विद्युत ऊर्जा को  यांत्रिक ऊर्जा में बदलता है. इसके मुख्य भाग क्षेत्र चुम्बक,  आर्मेचर, विभक्त वलय, दिशा परिवर्तक तथा ब्रुश हैं.

ट्रांसफार्मर : 

यह प्रत्यावर्ती धारा की वोल्टेज बढ़ाने या घटने का काम करता है. इसमें दो कुण्डलियाँ होती हैं : प्राथमिक (Primary) कुण्डली तथा द्वितीयक (Secondary) कुण्डली. यदि प्राथमिक कुण्डली में फेरों की संख्या N_{p},  वोल्टता  V_{p},  धारा i_{p} तथा द्वितीयक कुण्डली में फेरों की संख्या N_{s}, वोल्टता V_{s} तथा धारा i_{s} है, तब

\frac{V_{s}}{V_{p}} = \frac{N_{s}}{N_{p}}= \frac{i_{p}}{i_{s}} = r,    जहाँ 'r' को परिणमन अनुपात कहते हैं.

  1. टेलीफोन, माइक्रोफोन ध्वनि ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है.
  2. धारामापी को अमीटर में बदलने के लिए उचित न्यूनतम प्रतिरोध का शंट समान्तर क्रम में लगाते हैं.
    • शंट का प्रतिरोध S,   l_{g} = \frac{S}{S + G} \times i   सूत्र से ज्ञात करते हैं :
  3. धारामापी को वोल्टमीटर में बदलने के लिए  उचित उच्च प्रतिरोध का शंट श्रेणी क्रम में जोड़ते हैं. शंट का प्रतिरोध निम्न सूत्रों से ज्ञात करते हैं.
    1. l_{g} = \frac{V}{R + G}
    2. \frac{V_{1}}{G} = \frac{V_{2}}{R + G}
      • G = धारामापी का प्रतिरोध,
      • l_{g} = धारा जो धारामापी से मापी जा सकती है,
      • i = धारा, जो अमीटर से मापी जानी है,
      • S = अमीटर में बदलने के लिए न्यूनतम प्रतिरोध
      • R = वोल्टमीटर बनाने के लिए शंट का प्रतिरोध
      • V = जितने वोल्ट का वोल्टमीटर बनाना है.

सूत (1) का प्रयोग विभवान्तर मापने में तथा सूत्र (2) का प्रयोग वोल्टमीटर का प्रयास बढ़ाने में करते हैं.

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