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Toggleचुम्बकीय क्षेत्र :
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- चुम्बकीय बल रेखायें, उत्तरी ध्रुव से निकलकर दक्षिणी ध्रुव में प्रवेश कराती हैं.
- चुम्बकीय क्षेत्र B के लम्बवत रखे L लम्बाई के चालक में धारा i बहाने पर चालक पर लगने वाला बल,
- F = i B L न्यूटन
- यदि चालक चुम्बकीय क्षेत्र से \theta कोण पर रखा है, तब बल,
- F = iBL sin \theta
- बल की दिशा चुम्बकीय क्षेत्र B तथा धारा i दोनों के लम्ब होती है.
- चुम्बकीय क्षेत्र = B = \frac{F}{i \times L} \left(\frac{न्यूटन }{एम्पी० \times मी०}\right)
- चुम्बकीय क्षेत्र B के अन्य मात्रक वेबर/मी०^{2}, टेस्ला तथा गौस हैं.
- 1 गौस = 10^{-4} वेबर/मी०^{2} = 10^{-4 } टेस्ला = 10^{-4} N/Am
- कुण्डली में धारा i प्रवाहित होने पर, यदि वह \theta कोण पर स्थित किसी बिन्दु पर घूम जाती है,
- तब i = K. \theta
- किसी चालक में i धारा प्रवाहित होने पर उससे r दूरी पर स्थित किसी बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र,
- B = \frac{\mu_{O}}{4\pi} = \frac{2i}{r} = \frac{Ki}{r} ,
- जहाँ, \mu_{o} = 4\pi \times 10^{-7} ; K = \times 10^{-7} न्यूटन/एमिपायर^{2}
- q कुलाम आवेश के v मी०/से० से गतिमान होने पर, r दूरी पर स्थित किसी बिन्दु पर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र,
- B = \frac{\mu_{o}}{4\pi}= \frac{qv sin \theta}{r^{2}}=\frac{10^{-7}qv sin \theta}{r^{2}}
- जहाँ \theta आवेश के वेग v तथा दूरी r के बीच का कोण है.
- N फेरों वाली l लम्बाई की परिनालिका में i प्रवाहित होने पर परिनालिका के भीतर उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र,
- चुम्बकीय क्षेत्र B = \frac{\mu_{o} \times Ni}{l}
- यदि दो समान्तर चालकों के बीच की दूरी r है तथा उनमें i_{1}, i_{2} धारायें बह रही हैं तब उनकी l लम्बाई पर लगाने वाला बल,
- F = \frac{ki_{1} \times i_{2}}{r} \times l न्यूटन
- यदि धाराओं की दिशायें समान हैं तब आकर्षण बल लगता है और यदि विपरीत हैं तब प्रतिकर्षण बल लगता है.
इसे भी पढ़ें ⇒ प्रकाश (Light) के सूत्र एवं उपयोगी बातें
लौरेंज बल :
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- यदि q आवेश से आवेशित कोई कण चुम्बकीय क्षेत्र B की दिशा से \theta कोण पर v गति से गतिमान है तब कण पर लगने वाला बल,
- लौरेंज बल F = q v B sin \theta न्यूटन
- यदि q आवेश से आवेशित कोई कण चुम्बकीय क्षेत्र B की दिशा से \theta कोण पर v गति से गतिमान है तब कण पर लगने वाला बल,
चुम्बकीय फ्लक्स
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- चुम्बकीय फ्लक्स \phi = B \times A वेबर जहाँ, A, चुम्बकीय क्षेत्र B के लम्बवत तल का क्षेत्रफल है.
- यदि B, तल के लम्बवत न होकर तल पर खींचे गए लम्ब से \theta कोण बनाता है, तब
- \phi = B \times A \times cos \theta वेबर
- N फेरों वाली, चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत कुण्डली में से गुजरने वाला चुम्बकीय फ्लक्स,
- \phi = N \times B \times A
- जहाँ A कुण्डली के तल का क्षेत्रफल है. यदि कुण्डली का तल चुम्बकीय क्षेत्र के समान्तर है तब चुम्बकीय फ्लक्स शून्य होता है.
फैराडे के नियम :
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- किसी विद्युत् परिपथ में प्रेरित वि० वा० बल उस परिपथ से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स के परिवर्तन की दर के समानुपाती होता है, अर्थात्
- e = - \left(\frac{\phi_{2}-\phi_{1} }{\Delta t}\right)
- N फेरों वाली कुण्डली में प्रेरित वि० वा० बल,
- e = - N\left(\frac{\phi_{2}-\phi_{1} }{\Delta t}\right)
- किसी विद्युत् परिपथ में प्रेरित वि० वा० बल उस परिपथ से गुजरने वाले चुम्बकीय फ्लक्स के परिवर्तन की दर के समानुपाती होता है, अर्थात्
प्रत्यावर्ती धारा (A.C.) :
यह वह धारा है जो समय के साथ बदलती रहती है और एक निश्चित समय के पश्चात् उतनी ही हो जाती है.
दिष्ट धारा (D.C.) :
यह वह धारा है जो समय के साथ नहीं बदलती.
डायनमो या विद्युत जनित्र (A.C. Dynamo) :
यह यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलता है. इसके मुख्य भाग क्षेत्र चुम्बक, आर्मेचर, सर्पी वलय तथा ब्रुश हैं.
दिष्टधारा जनित्र ((D.C. Dynamo) :
यह विद्युत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलता है. इसके मुख्य भाग क्षेत्र चुम्बक, आर्मेचर, विभक्त वलय, दिशा परिवर्तक तथा ब्रुश हैं.
ट्रांसफार्मर :
यह प्रत्यावर्ती धारा की वोल्टेज बढ़ाने या घटने का काम करता है. इसमें दो कुण्डलियाँ होती हैं : प्राथमिक (Primary) कुण्डली तथा द्वितीयक (Secondary) कुण्डली. यदि प्राथमिक कुण्डली में फेरों की संख्या N_{p}, वोल्टता V_{p}, धारा i_{p} तथा द्वितीयक कुण्डली में फेरों की संख्या N_{s}, वोल्टता V_{s} तथा धारा i_{s} है, तब
\frac{V_{s}}{V_{p}} = \frac{N_{s}}{N_{p}}= \frac{i_{p}}{i_{s}} = r, जहाँ 'r' को परिणमन अनुपात कहते हैं.
- टेलीफोन, माइक्रोफोन ध्वनि ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है.
- धारामापी को अमीटर में बदलने के लिए उचित न्यूनतम प्रतिरोध का शंट समान्तर क्रम में लगाते हैं.
- शंट का प्रतिरोध S, l_{g} = \frac{S}{S + G} \times i सूत्र से ज्ञात करते हैं :
- धारामापी को वोल्टमीटर में बदलने के लिए उचित उच्च प्रतिरोध का शंट श्रेणी क्रम में जोड़ते हैं. शंट का प्रतिरोध निम्न सूत्रों से ज्ञात करते हैं.
- l_{g} = \frac{V}{R + G}
- \frac{V_{1}}{G} = \frac{V_{2}}{R + G}
- G = धारामापी का प्रतिरोध,
- l_{g} = धारा जो धारामापी से मापी जा सकती है,
- i = धारा, जो अमीटर से मापी जानी है,
- S = अमीटर में बदलने के लिए न्यूनतम प्रतिरोध
- R = वोल्टमीटर बनाने के लिए शंट का प्रतिरोध
- V = जितने वोल्ट का वोल्टमीटर बनाना है.
सूत (1) का प्रयोग विभवान्तर मापने में तथा सूत्र (2) का प्रयोग वोल्टमीटर का प्रयास बढ़ाने में करते हैं.